मित्रो,
किसी भी संवर्ग का एसोसिएशन बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय ही होता है। एसोसिएशन की सफलता-विफलता सामूहिक होती है, किंतु आशा-निराशा नेतृत्व विशेष के साथ ज़्यादा बंधी होती है। कोई भी एसोसिएशन सबल नेतृत्व में ही प्रगति करता है। हमारा संवर्ग भी इसका अपवाद नहीं है।
मौजूदा एसोसिएशन जब अस्तित्व में आया, अनुवादक बिरादरी के समक्ष चुनौतियां ही चुनौतियां थीं। ऐसा एक भी मुद्दा नहीं था जिसका समाधान क़रीब हो और आज स्थिति यह है कि अब चंद ही मुद्दे सुलझाने को शेष रह गए हैं। नेतृत्व की सफलता यही होती है कि वह बिना किसी प्रत्याशा के, न सिर्फ अपने वायदे पूरे करे, बल्कि ऐसी परिस्थितियां क़ायम करने में भी सफल हो कि शेष भी नेतृत्व के प्रति आशान्वित रहे। इस संवर्ग में इतना विश्वास पहली बार क़ायम हुआ है।
यहां तक की यात्रा कोई शांतचित्त, भावना पर नियंत्रण रखने वाला, अहंकारमुक्त और समावेशी नेतृत्व ही करा सकता था। सोशल मीडिया से इतर, व्यावहारिक दुनिया में जीने वाले साथी जानते हैं कि यह सब निःस्वार्थ परिश्रम के बूते ही संभव हुआ है। अधिकारियों और संवर्ग के साथियों के साथ एकसाथ तालमेल बिठा पाना आसान न था लेकिन नेतृत्व की सहजता, सकारात्मकता और विनम्रता से बहुत कुछ संभव हुआ।
धीरोदात्त नायक सफलता का श्रेय लेने की होड़ में नहीं पड़ता और यह गुण उसके कद को और बड़ा करती है। लगातार आते फोन तथा ब्लॉग और फोन पर असंयत टीका-टिप्पणियों के बावजूद संयम न टूटे, व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन दांव पर लगाकर भी संवर्ग की आकांक्षाएं पूरी करने के ईमानदार प्रयास हों और किसी के प्रति कोई विद्वेष रखे बिना सार्वजनिक हित में काम भी जारी रहें-- कुशल नेतृत्व की अग्नि-परीक्षा यही होती है।
शुक्रिया दिनेशजी, ख़रे उतरने के लिए।
जन्मदिन भी मुबारक़, साथी!
प्रिय एवं आदरणीय महोदय, कनिष्ठ अनुवाद अधिकारियों के वेतन स्तर के विषय में भी कुछ कीजिये।
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