साथियो,
सम्मेलन में, समय संयोजन की दृष्टि से, एक ही समय पर एक से अधिक कार्यक्रम रखे गए थे ताकि सहभागी अपनी रुचि के विषय पर हो रही प्रस्तुति में शामिल हो सकें। इससे कुछ साथियों में सभी सत्रों में सहभागिता का अवसर न मिल पाने की कचोट रही, किंतु अन्यथा दो दिन में इतनी अधिक प्रस्तुतियां संभव न होतीं। कार्यक्रम-स्थल पर प्रत्येक सत्र में कक्ष खचाखच भरे रहे और कई अन्य को लाइव कार्यक्रम स्क्रीन पर देखना पड़ा।
सभी प्रस्तुतियां सारगर्भित और विविधतापूर्ण थीं। सत्रों में वक्ताओं की संख्या इतनी थी कि कई सत्रों में वक्ताओं के लिए समय-सीमा का अनुपालन अनिवार्य हो गया। इससे सभी उपस्थित साथियों को कई विद्वानों को एकसाथ सुनने का सुख मिला। श्रोताओं के लिए यह एक असाधारण अवसर था और वक्ता विद्वज्जनों के लिए भी करतल-ध्वनि का क्रम अनवरत बना रहा। शीर्ष नेतृत्व से राजभाषा के प्रति प्रशंसा के दो शब्द सुनना हमसब के लिए एक सुखद अनुभव था। आजीविका से जुड़े होने के बावजूद अपने काम को थैंकलेस जॉब समझने वालों के लिए भी यह गर्व का क्षण था।
आयोजन की व्यापकता से स्वयंसिद्ध था कि सभी संबंधितों ने प्रत्येक स्तर पर अपनी प्रतिभा और श्रम का ईष्टतम उपयोग किया है। इस क्रम में, निदेशक श्री बी.एल. मीनाजी, श्री आनंद कुमारजी, श्री मोहनलाल वाधवानीजी, उप-निदेशक और सत्र संचालक श्री राजेश श्रीवास्तवजी, सहायक निदेशक श्री सुधीर कुमारजी, श्री सोहैल अहमदजी (यद्यपि वे वाराणसी यात्रा के लिए उपलब्ध नहीं हो सके),श्री अनिल श्रीवास्तवजी और इरफ़ान अहमद ख़ानजी, श्री रघुवीर शर्माजी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं जिन्होंने आयोजन की सफलता के लिए हरसंभव प्रयास किए। लोकहित में सदैव अग्रणी श्री दिनेश कुमार सिंहजी (सहायक निदेशक,गृह मंत्रालय) ने भी सचिव और संयुक्त सचिव महोदया की अपेक्षाओं के अनुरुप निरन्तर अपनी सक्रियता बनाए रखी।
अपने प्रकार के इस प्रथम आयोजन की इस अभूतपूर्व सफलता से राजभाषा विभाग का मनोबल बढ़ा है। विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त सूचनानुसार, विभाग प्रतिवर्ष ऐसे छह सम्मेलनों की योजना बना रहा है और इसे उच्चतम स्तर से समर्थन प्राप्त है। यदि प्रतिवर्ष ऐसे चार सम्मेलन भी आयोजित हो सकें, तो राजभाषा कर्मी देशभर के मूर्धन्य विद्वानों को सुन सकेंगे और उनके संपर्कों का, साहित्यिकता का वितान और विस्तृत होगा। इससे राजभाषा सम्मेलन के नाम पर हर दो-चार महीने पर आने वाले पत्रों का क्रम थमने की उम्मीद भी की जा सकती है क्योंकि राजभाषा विभाग गैर-सरकारी संस्थाओं के सम्मेलनों में सहभागिता को पूर्व में ही अनावश्यक बता चुका है। राजभाषा विभाग यदि अखिल भारतीय सम्मेलनों का क्रम जारी रखता है, तो ऐसे गैर-सरकारी आयोजन स्वयं निरर्थक हो जाएंगे।
पुनश्चः सम्मेलन के संबंध में दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक आज और दैनिक जनसंदेश में प्रकाशित समाचारों पर एक दृष्टिः
हिंदी कार्मिकों के पदोन्नति के बारे में भी सोचना उचित होगा। भारत के अधिकांश कार्यालयों में हिंदी कर्मियों की स्थिति कैसी है यह बताने की जरूरत नही। बहुत से अधीनस्थ कार्यालयों में 20 साल के उपरांत एक पदोन्नति का अवसर प्राप्त होता है। वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी को राजपत्रित अधिकारी ग्रुप भी करने की जरूरत है कृपया इस संबंध में अपेक्षित कार्रवाई अनिवार्य है।धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकृपया संवर्ग समीक्षा के संबंध में सूचना हो कि क्या हो रहा है एवं सहायक निदेशक के सीधी भर्ती के कितने पद हो सकते हैं एवं जेटीओ तथा एसटीओ के ग्रेड पे या दोनों पदों के मर्जर की कोई योजना है क्या
जवाब देंहटाएंमहोदय कहीं कहीं पर पदोन्नति 15-20 साल के पश्चात मिलती है और वह भी तदर्थ आधार पर । इस संबंध में एक सुझाव यह भी है कि हिन्दी संवर्ग में तदर्थ आधार में की गई सेवा को नियमित सेवा माना जाए ताकि अगली पदोन्नति में असुविधा न हो । धन्यवाद
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