* *डीओपीटी ने 3 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके उप-निदेशकों को संयुक्त निदेशक के रुप में पदोन्नति देने और 4 वर्ष से अधिक की नियमित सेवा पूरी कर चुके 7 वरिष्ठतम सहायक निदेशकों को उप-निदेशक बनाए जाने के लिए छूट के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी। एसोसिएशन ने पिछले दिनों इस सिलसिले में डीओपीटी की सचिव से मुलाक़ात की थी। * एसोसिएसन ने शेष सहायक निदेशकों की पदोन्नति के मामले को भी निर्णायक सफलता मिलने तक डीओपीटी के समक्ष उठाते रहने का भरोसा दिलाया।

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

संवर्ग संबंधी कार्यों में तेज़ी के लिए उच्चाधिकारियों से मुलाक़ात

मित्रो,
तदर्थ सहायक निदेशकों(राजभाषा) के नियमितीकरण,वरिष्ठ अनुवादकों की तदर्थ सहायक निदेशक के रूप में पदोन्नति,भर्ती नियमों की स्थिति,अनुवादकों को ओपन पास दिए जाने तथा अन्य सम्बद्ध मुद्दों पर विभिन्न स्तरों पर लगातार सम्पर्क बनाए रखने के बावजूद अधिकतर मामलों में बेहद धीमी प्रगति को देखते हुए,केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा अनुवादक एसोसिएशन ने संयुक्त सचिव श्रीमती पूनम जुनेजा से दिनांक 07 अक्टूबर,2013 को मुलाक़ात कर उपर्युक्त मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। बैठक में अध्यक्ष श्री दिनेश कुमार सिंह और महासचिव श्री अजय कुमार झा के साथ-साथ सर्वश्री सुरेश चन्द्र चतुर्वेदी, सुभाष पंडोरा,मनोज चौधरी,कुमार राधारमण और मंजुल मूर्ति उपस्थित थे।

      प्रारम्भ में,एसोसिएशन ने संयुक्त सचिव महोदया का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया कि वर्ष 2010 की रिक्तियों के विरुद्ध नियमित किए गए 37 वरिष्ठ अनुवादकों को तदर्थ सहायक निदेशक के रूप में पदोन्नत नहीं किए जाने से संवर्ग में भारी असंतोष है जबकि उन्होंने इसके लिए तीन वर्ष की नियमित सेवा की पात्रता अवधि पूरी कर ली है। इस पर,संयुक्त सचिव महोदया ने तत्काल ही, अनुभाग अधिकारी(सेवा) श्री भाटियाजी से फोन पर बात की जिसके प्रत्युत्तर में श्री भाटिया ने उन्हें सूचित किया कि तदर्थ सहायक निदेशक के पद पर पदोन्नति के लिए 37 वरिष्ठ अनुवादक जनवरी,2014 में पात्र होंगे। एसोसिएशन ने इस सूचना को भ्रामक बताते हुए संयुक्त सचिव महोदया से स्पष्ट कहा कि सभी 37 वरिष्ठ अनुवादक तत्काल ही पदोन्नति के लिए पात्र हैं और यदि आवश्यक हो तो वे फाइल मंगाकर स्थिति से अवगत हो लें। इस पर संयुक्त सचिव महोदया ने कहा कि यदि एसोसिएशन का दावा सही है तो वह प्रयास करेंगी कि 2010 की रिक्ति के विरूद्ध नियमित किए गए सभी 37 अनुवादकों के पदोन्नति आदेश निकालने के संबंध में आवश्यक कार्रवाई शीघ्र शुरू कर दी जाएगी।

      भर्ती नियमों के बारे में संयुक्त सचिव महोदया ने जानकारी दी कि इस मामले को अंतिम रूप दिया जा चुका है और संबंधित फाइल अनुमोदनार्थ यूपीएससी भेजी जा रही है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि सहायक निदेशक के लिए होने वाली सीधी भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा के लिए अनिवार्य योग्यता के रूप में अनुवाद,शिक्षण,अनुसंधान एवं पत्रकारिता आदि में तीन वर्ष के अनुभव को रखा गया है। हालांकि,एसोसिएशन ने अनुवाद एवं कार्यान्वयन को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में अनुभव संबंधी मद को हटाने की मांग की थी और राजभाषा विभाग हमारी इस मांग से सहमत भी था किंतु कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने अपनी ओर से इसे बनाए रखा। साथ ही,कनिष्ठ अनुवादक के लिए होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा हेतु अनुवाद में डिप्लोमा को भी अनिवार्य योग्यता के रूप में बनाए रखा गया है।

      मित्रो,हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि इन दिनों राजभाषा विभाग अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यरत राजभाषाकर्मियों को केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग में आमेलित करने के एक प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है। यह मामला उस समय शुरू हुआ जब सचिव(राजभाषा) ने दिनांक 21 जून,2013 को सभी मंत्रालयों और विभागों के सचिवों को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया कि वे अपने अधीनस्थ कार्यालयों का एक संवर्ग बनाएं। ऐसे पत्र सचिव(राजभाषा) द्वारा पारम्परिक रूप से जारी किए जाते रहे हैं किंतु चूंकि इस बार पत्र में यह भी लिखा था कि "जहां मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालयों में हिंदी के संयुक्त पदों की संख्या मिलाकर भी कोई संवर्ग बनाने का कोई औचित्य नहीं है,वहां ऐसे संवर्गेतर राजभाषाकर्मियों को केंद्रीय सचिवालय राजभाषा सेवा संवर्ग में आमेलित करने पर विचार किया जा सकता है",तो जाहिर है यह उन कार्यालयों के लिए संजीवनी प्रस्ताव था जो अलग-थलग पड़े हैं अथवा जहां पदोन्नति के अवसर कमतर हैं। परिणाम यह हुआ कि इन दिनों राजभाषा विभाग में अधीनस्थ कार्यालयों से ऐसे पत्रों की भरमार लगी हुई है जो सीएसओएलएस संवर्ग में आमेलित होने के इच्छुक हैं। संयुक्त सचिव महोदया का कहना था कि अभी इस बारे में कोई निर्णायक पहल नहीं की गई है किंतु यह प्रस्ताव विचाराधीन अवश्य है। इस बारे में राजभाषा विभाग की सोच यह है कि अधीनस्थ कार्यालयों के लोगों को इस संवर्ग में लाने से यह संवर्ग बड़ा होगा तथा संवर्ग को कई नए पद भी मिलेंगे। संयुक्त सचिव महोदया का कहना था कि इससे इस संवर्ग के लोगों को भी अखिल भारतीय स्तर पर स्थानांतरण से एक्सपोजर मिलेगा। एक ऐसे समय में,जब यह संवर्ग स्वयं ठहराव की ऐसी स्थिति में है कि 20 साल से ज्यादा समय से अनुवाद कर रहे लोग आज तक अधिकारी नहीं बन पाए हैं और जबकि कनिष्ठ तथा वरिष्ठ अनुवादकों तक को आमेलित न करने के पीछे व्यय विभाग सौ कारण बताता रहा है,ऐसे में अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषाकर्मियों को इस संवर्ग में मिलाए जाने का ख़याल हैरतअंगेज़ है। एसोसिएशन ने इस पर आपत्ति प्रकट की किंतु संयुक्त सचिव महोदया का कहना था कि इस बारे में कोई निर्णय सचिव महोदय ही लेंगे। इस बीच,एसोसिएशन को सूचना मिली है कि इस मुद्दे को अमली जामा पहनाने के लिए राजभाषा विभाग ने चार सदस्यीय विशेषज्ञ समूह का गठन किया है जिसमें विभाग के तीन निदेशक तथा अनुभाग अधिकारी(सेवा) को शामिल किए जाने की अधिसूचना एकाध दिनों में जारी की जानी है। अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषाकर्मियों के लिए पदोन्नति के अवसर कम होना हिंदी संवर्ग के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। एसोसिएशन की भी इच्छा है कि वहां बेहतर स्थितियां बनें, किंतु इसके उपाय के तौर पर उन्हें सीएसओएलएस संवर्ग में आमेलित करने के विचार का एसोसिएशन पुरज़ोर विरोध करता है। हम इस संबंध में सचिव(राजभाषा) को प्रतिवेदन देने जा रहे हैं और मुद्दे की गंभीरता को उच्चतम स्तर पर उठाएंगे। इस बारे में संवर्ग के साथियों को आगे भी अद्यतन रखा जाएगा।

      उल्लेखनीय है कि वरिष्ठतम अनुवादकों की पदोन्नति के लिए संयुक्त सचिव महोदया ने निदेशक(राजभाषा) श्री अजय कुमार सिंह से मिलने का सुझाव दिया जिसके अनुसरण में एसोसिएशन ने अगले ही दिन निदेशक महोदय से मिलकर उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया। निदेशक महोदय ने आश्वस्त किया कि वे इस मामले को व्यक्तिगत रूप से देखेंगे और यदि पात्रता बनती है तो पदोन्नति के लिए आवश्यक कार्रवाई शुरू की जाएगी।

      साथियो,ओपन पास के बारे में हम आपको सूचित करना चाहेंगे कि संयुक्त सचिव महोदया की स्वीकृति के पश्चात,यह फाइल गृह मंत्रालय भेजी गई है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में, सहायकों के समतुल्य वेतनमान में कार्य कर रहे अन्य कर्मियों द्वारा ओपन पास जारी किए जाने की मांग को गृह मंत्रालय के विशेष सचिव इस आधार पर खारिज कर चुके हैं कि एक ही परीक्षा से चुन कर आने के बावजूद,रेल मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय के सहायकों को ओपन पास जारी नहीं किया गया है और यह पास केवल केंद्रीय सचिवालय सेवा के सहायकों/वैयक्तिक सहायकों आदि तक सीमित है। किंतु अनुभाग अधिकारी(सेवा) श्री आर.पी. भाटिया जी ने इस मामले में एसोसिएशन को भरोसा दिलाया है कि वह इस मामले में व्यक्तिगत रूचि लेते हुए अनुवादकों के लिए ओपन पास की मंजूरी का हरसंभव प्रयास करेंगे और जल्द ही हमारे पक्ष में निर्णय लिए जाने की संभावना है।

       अन्य अद्यतनों में, 6 उप-निदेशकों को तदर्थ आधार पर संयुक्त निदेशकों के रूप में पदोन्नत करने के लिए डीपीसी की जा चुकी है। इनके अलावा, तदर्थ उप-निदेशकों को शीघ्र नियमित करने तथा 2011 की रिक्तियों के विरूद्ध पदोन्नत किए गए अनुवादकों की सूची में प्रशासनिक कारणों से छूट गए 4 कनिष्ठ अनुवादकों को वरिष्ठ अनुवादकों के रूप में पदोन्नत करने संबंधी आदेश बस जारी होने ही को है। 

       संवर्ग के समस्त साथियों को दुर्गापूजा की शुभकामनाएं।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अध्‍यक्ष महोदय

    सादर नमस्‍कार
    अच्‍छी बैठक थी परंतु 4600/- ग्रेड वेतन के बारे में कोई बात न करना यह दर्शाता है कि ऐसाशियेशन इस संदर्भ में गंभीर नहीं है । अनुरोध है कि इस सदंर्भ में भी तुरंत राजनैतिक मंत्रियों से बातचीत की जाए ।
    डा विजय शर्मा

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  2. अध्‍यक्ष महोदय

    सादर नमस्‍कार

    उपरोक्‍त बैठक के बाद गैर राजभाषा केडर के सदर्भ में केडर वाले अनुवादक भाईयों की शंकाएं
    बिल्‍कुल सही हैं परंतु हमारे बारे में आप ही कुछ कर सकते हैं । पीएचडी , बीएड, डिप्‍लोमा अनुवाद व एम ए होने के बाबजूद फरवरी 1989 के बाद एक भी पदोन्‍नति नहीं दी गई । जबकि मंत्रालय में जोकि गैर राजभाषा केडर से संबंधित है एक कनिष्‍ठ अनुवादक भर्ती होकर आज की तारीख में उप निदेशक के समकक्ष है । हमारा अधीनस्‍थ कार्यालय है पदोन्‍नति की व्‍यवस्‍था नहीं है । तकनीकी कर्मचारी निदेशक के पद पर हैं जोकि सहायक वैज्ञानिक भर्ती हुए थे । इसी तरह हायर सेकंडरी पास उप निदेशक के पद पर पदोन्‍नत है । बात मेरी ऐजुकेशन की नहीं है । बात पदोन्‍नति की भी नहीं है ।
    तीन शहरों दिल्‍ली, सोलन, चण्‍डीगढ का कार्यभार देखना जिम्‍मेदारी मेरी है एलडीसी/यूडीसी/स्‍टेनो उच्‍च पदों पर आसीन है उनका प्रशासनिक / तकनीक कार्य भी हमसे करवाया जाता है और गुलछरे वह उडा रहे हैं आपकी पूरी जिम्‍मेदार बनती है कि अगर एक राजभाषा विभाग है रिर्पोट/ निरीक्षण उनका कार्य में आता है या तो अधनीनस्‍थ गैर राजभाषा कार्यालय जो केंद्रीय मंत्रालय के अधीनस्‍थ हैं उनमें पिछली तारीखों से पदोन्‍नति की व्‍यवस्‍था की जाए । केन्‍द्र का मंत्रालय/अधनीस्‍थ कार्यालय इसमें क्‍यों नहीं शामिल हो सकता यह राजभाषा विभाग की कमी है कि कुछेक मंत्रालयों को राजभाषा विभाग की केडर व्‍यवस्‍था से बाहर रखा गया है यह सरासर अन्‍याय है अत: सभी का सामान रुप से ध्‍यान रखा जाए ऐसा मेरा मानना है अनुरोध है कि केडर व्‍यवस्‍था के संबंध में जारी किए गए अर्धशासकीय पत्र पर विशेष ध्‍यान दें इसे परंपरा समझते हुए रददी की टोकरी में एसोशियेशन की ओर से फैंकवाने की बात न की जाए यह अतयंत गंभीर मामला है यही कारण है कि कुछेक अनुवादक भाई 2800/- का ही ग्रेड वेतन पा रहे हैं । आप सहयोग नहीं दोगे तो क्‍या व्‍यय विभाग देगा सो मेरा यह मानना है कि जहां कनिष्‍ठ अनुवादक के पद के आगे नहीं कुछ हो सकता तो उनके लिए अन्‍य कार्मिकों की तरह ही व्‍यवस्‍था करना आप सभी का कत्‍वर्य है । जीवन तो पशु भी जी लेता हैं परंतु सम्‍मान भी कोई चीज है । एक तो कनिष्‍ठ अनुवादक निदेशक बन जाता है दूसरा कनिष्‍ठ ही ताउम्र रह जाता है । 4600/- ग्रेड वेतन की ओर ही ध्‍यान दें तो बाबू लोगों ने क्‍यों रिजेक्‍ट किया क्‍या सुर्पीम कोर्ट से भी कोई अधिक बडा न्‍यायालय है आपने अभी तक संघ के माध्‍यम से राजनेताओं से संपर्क क्‍यों नहीं साधा अभी भी समय है तैयारी रखें आपके पास मतदान का इतना बडा हथियार है दिल्‍ली में असंख्‍य मतदाता हैं । अत: इस ओर विशेष ध्‍यान दिया जाए ।
    साधन्‍वाद

    डा विजय शर्मा

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    1. @ आदरणीय डॉ. विजय शर्माजी,
      चूंकि 4600रू. ग्रेड-पे का मुद्दा सभी अनुवादकों से जुड़ा है,लिहाजा इसके प्रति एसोसिएशन के गंभीर न होने का प्रश्न ही नहीं है। संयुक्त सचिव महोदया के समक्ष केवल वही मुद्दे उठाए गए जिनपर वे सीधे तौर पर पहल कर पाने की स्थिति में हैं। ग्रेड-पे का मुद्दा संयुक्त सचिव स्तर से निपटाया नहीं जाना है। राजभाषा विभाग हमारी मांगों का समर्थन करता है और उसने यह प्रस्ताव व्यय विभाग को पहले भी भेजा था क्योंकि यह व्यय विभाग का ही मामला है जो इसे ख़ारिज कर चुका है,आप जानते हैं। अब अदालती फैसले के बाद ही इस मामले में विभाग से कोई पहल करवाई जा सकती है,इसलिए 13 नवम्बर को कैट में सुनवाई के परिणाम का इंतज़ार करें। एसोसिएशन अन्य विकल्पों पर भी गौर कर रहा है।
      हम यह पहले भी कह चुके हैं कि एसोसिएशन चाहता है कि अधीनस्थ कार्यालयों में कार्यदशाएं बेहतर बनें,किंतु इस समय जबकि हमारा संवर्ग स्वयं अनेक समस्याओं से जूझ रहा है,हम अधीनस्थ कार्यालयों के राजभाषाकर्मियों के आमेलन के पक्ष में नहीं है। आप यह भी जानते ही होंगे कि सभी केंद्रीय कार्यालयों में भर्ती और पदोन्नति की स्थितियां एक जैसी नहीं हैं,इसलिए आमेलन की स्थिति में उनकी वरिष्ठता का निर्धारण ठेढ़ी खीर होगा। यदि भविष्य में कभी अनुकूल परिस्थितियां बनती हैं तो हम ज़रूर इसका स्वागत करेंगे।

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  3. परम आदरणीय अध्‍यक्ष महोदय

    आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि 4600/- ग्रेड वेतन के बारे आप गंभरी होंगे परंतु मेरा यह मानना है कि इस संदर्भ में आज की तारीख में दिल्‍ली में बैठे मेरे अनुवादक व राजभाषा संवर्ग से जुडे अधिकारी अपने मताधिकार के बारे में जागरुकता दिखाते हुए एकाध सप्‍ताह में राजनेताओं को अपने केस की जानकारी देकर आदेश का अनुरोध तो कर ही सकते हैं इसमें कोई दो राए नहीं कि राजभाषा के सचिव महोदय ने इस केस के संदर्भ में पूरा सहयोग किया है परंतु व्‍यय विभाग के द्वारा केस को रदद करने के जो कारण बताए गए हैं उनसे मेरी राए भिन्‍न हैं क्‍योंकि वह शक्तिमान व बुद्धिमान अधिकारी हैं व किसी को उन्‍हें जरा भी वित लाभ जो हमारा हक बनता है देने में अपनी हीनता समझते हैं अनुवादक भाई लगभग सभी अपने कार्य के अतिरिक्‍त सुविधाओं के आभाव में रहते हुए अधिक कार्य करते हैं मैं तकनीकी कार्य में कार्यरत हूं तथा पुन: कह रहा हूं कि 25 वर्ष के सेवाकाल में एक भी पदोन्‍नति नहीं पाई है । अत: अनुवादक एसोशियेशन को हमारे लिए किसी भी तरह पदोन्‍नति प्रदान करने के लिए बनाए जाने नियम हेतु पूरा सहयोग देना चाहिए क्‍योंकि हमारे मंत्रालय ने अपने को राजभाषा केडर से बाहर रखा है और हैरानी की बात है कि वहां यानि कि दिल्‍ली मुख्‍यालय में स्थित कनिष्‍ठ अनुवादक भर्ती होने के बाद 1993 में आज उप निदेशक राजभाषा के पद पर आसीन है तथा कई संयुक्‍त निदेशक राजभाषा भी वहां से पदोन्‍नति पाकर रिटायर हो गए हैं इसी तरह पुन: दोहरा रहा हूं कि हायर सेकंडरी पास उप निदेशक के पद पर पीठासीन है तथा इसे बाद संयुक्‍त निदेशक के पद पर भी अधिकारी पदोन्‍नत हुए हैं तो मैं अपने बारे में यह कह सकता हूं कि तकनीकी व प्रशासनिक अनुवाद करने के बाद अन्‍य कई पदों के कार्य मेरे से करवाए गए तथा काफी पुरस्‍कार भी प्राप्‍त किए गए जोकि वरिष्‍ठ निदेशक को मिले क्‍या हम एक भी पदोन्‍नति के हकदार नहीं है आपसे पुन: अनुरोध करता हूं कि अनुकूल परिस्थितियों की बात को छोडकर हमें मिलजुलकर अधीनस्‍थ कार्यालय के अनुवादकों की पदोन्‍नति के लिए पूरा जोर लगाना होगा । जहां तक आपका यह कहना है कि भर्ती नियमों में हर जगह अंतर होता है तो मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारे केन्‍द्र सरकार के विभाग के द्वारा बनाए गए भर्ती नियम राजभाषा विभाग के द्वारा स्‍थापति भर्ती नियमों में उच्‍चतर है सो मेरा अभी भी निवेदन है कि केस की बजाए आज की तारीख में 4600/- ग्रेड वेतन के संदर्भ में राजनेताओं को टीपी लीना के केस की हिस्‍टरी बताकर आदेश जारी करवाया जा सकता है अन्‍यथा केस उच्‍चतम न्‍यायालय तक खीचने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगेगा क्‍यांकि पहले भी उच्‍चतम न्‍यायालय के द्वारा ही केस संबंधी निर्णय अनुवादकों के पक्ष में दिए गए हैं उनसे हमें क्‍या लाभ मिला । जब हम अपने विभाग से ग्रेडवेतन संबंधी कोई भी प्रतिवेदन देते हैं तो यही कहा जाता है कि जो राजभाषा विभाग देगा हम भी वह प्रदान कर देंगे परंतु राजभाषा विभाग के पदोन्‍नति नियमों को कभी लागू नहीं किया गया । कनिष्‍ठ से वरिष्‍ठ अनुवादक का पद तभी पैदा होता है जहां पर स्‍टाफ की संख्‍या ज्‍यादा हो एक एलडीसी अधीनस्‍थ कार्यालय का निदेशक के पद का हकदार है परंतु कनिष्‍ठ अनुवादक वहीं का वहीं दम घुट के मर जाएगा । जैसी की स्थिति‍ मेरी है अपने सामने कनिष्‍ठ प्रशासनिक / तकनीकी कर्मचारियों को पदोन्‍न्‍ति पाते देखता हूं तो दम में घुटन सभी के होती है यदि अनुवादक संघ ही हमारी सहायता नहीं करेगा तो कौन करेगा यह तो सब मतलब साधने की बात है अगर आप नहीं भी राजभाषा केडर में शामिल करना चाहते तो कम से कम समयबद्ध पदोन्‍न्‍ति की व्‍यवस्‍था तो करवाएं ताकि उनका सामाजिक जीवन भी उच्‍च हो सके । मैं तो जब तक यदि नियम राजभाषा में आमेलन के बन भी गए तब तक रिटायर हो चुका हूंगा पुन: अनुरोध है कि सभी भाईयों की पदोन्‍नति व्‍यवस्‍था करने का समाधान किया जाए । कम से कम मेरे लिए नहीं तो अन्‍य छोटी आयु के अनुवादकों का तो भला हो जो दसवीं पास अधिकारियों का दंश झेलते रहते हैं । बेहतर कार्य की अपेक्षा के साथ । सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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  4. अध्‍यक्ष महोदय

    सादर प्रणाम

    4600/- ग्रड वेतन के मुददे पर मैं यह कहना चाहता हूं कि किसी समय संघ के द्वारा यह कहा गया था कि व्‍यय विभाग को पुन: लिखा गया है कि वह इस मुददे पर पुन: विचार करें परंतु आपके द्वारा दूसरे प्रतिवेदन के संदर्भ में कोई जानकारी प्रदान नहीं की गई । अत: हम यह मानकर चलें कि व्‍यय विभाग की ओर से कोई स्‍पष्‍टीकरण अब बकाया नहीं है और केवल कोर्ट केस के माध्‍यम से ही यह प्राप्‍त किया जा सकता है । अत: टीपी लीना को यदि आधारन माना गया तो केस एमएसीपी से संदर्भ में ही है ।
    सादर सहित
    डा विजय शर्मा

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अपनी पहचान सार्वजनिक कर की गई आलोचना का स्वागत है। किंतु, स्वयं छद्म रहकर दूसरों की ज़िम्मेदारी तय करने वालों की और विषयेतर टिप्पणियां स्वीकार नहीं की जाएंगी।